काठमांडू, 01 जुलाई। नेपाल की संसद में हाल ही में पारित हुए सिविल सेवा विधेयक को लेकर सत्तारूढ़ गठबंधन के दलों के बीच गंभीर मतभेद उभर कर सामने आए हैं। प्रतिनिधि सभा से पारित विधेयक में राजनीतिक सहमति के विरुद्ध प्रावधान जोड़ दिए जाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
इस मुद्दे को लेकर माओवादी केंद्र और सीपीएन-यूएमएल दोनों दलों ने राज्य मामले और सुशासन पर बनी संसदीय समिति के अध्यक्ष रामहरि खतिवडा से इस्तीफे की मांग की है। आज समिति की बैठक के दौरान यह आरोप लगाया गया कि अध्यक्ष ने समिति को विश्वास में लिए बिना विवादास्पद प्रावधान विधेयक में शामिल कर पारित करवाया।
विवाद का केंद्र खंड 82(4) है, जिसके अनुसार सेवानिवृत्त या इस्तीफा दे चुके सिविल सेवकों को दो वर्षों तक किसी संवैधानिक या सरकारी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता। परंतु खंड 82(5)(A) में संशोधन करते हुए इस प्रतिबंध से मुख्य सचिव, सचिव और सह सचिव को अपवाद बना दिया गया—वह भी समिति को सूचित किए बिना।
माओवादी सांसद माधव सपकोटा ने इस प्रक्रिया को “सांसदों की गरिमा के खिलाफ” बताते हुए समिति अध्यक्ष रामहरि खतिवडा और समिति सचिव सूरज कुमार ड्यूरा के इस्तीफे की मांग की। उन्होंने इसे नैतिक जिम्मेदारी का मामला बताया।
यूएमएल नेता और पूर्व कानून मंत्री पद्म गिरि ने तो इस पूरे घटनाक्रम को “गंभीर साजिश” करार देते हुए तत्काल जांच और दंडात्मक कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि जब तक दोषियों को जवाबदेह नहीं ठहराया जाता, तब तक समिति की कार्यवाही स्थगित की जानी चाहिए।
इस मामले को लेकर राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने भी संसद में विशेष समय लेते हुए विरोध दर्ज किया और विधेयक को अमान्य घोषित करने की मांग की।