नई दिल्ली। फिल्म ‘रहना है तेरे दिल में’ से रोमांटिक हीरो के रूप में दर्शकों के दिलों में जगह बनाने वाले आर. माधवन ने अभिनय में विविधता लाकर खुद को समय के साथ साबित किया है। अब वे एक बार फिर ‘आप जैसा कोई’ फिल्म में रोमांस की दुनिया में वापसी कर रहे हैं, जिसमें उनके साथ होंगी फातिमा सना शेख। ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से खास बातचीत में उन्होंने अपने करियर, सिनेमा के बदलते रूप और ओटीटी को लेकर कई दिलचस्प बातें साझा कीं।
Q. क्या रोमांस की परिभाषा और उसका तरीका आज के दौर में बदल चुका है?
बिल्कुल, ‘आप जैसा कोई’ मेरे लिए कई स्तरों पर चुनौतीपूर्ण रही है। जब मैंने ‘रहना है तेरे दिल में’ की थी, तब रोमांस का एक अलग ही मासूमियत भरा अंदाज़ होता था। न सोशल मीडिया था, न डेटिंग ऐप्स। अब समय बदल गया है, और उसके साथ हमें भी खुद को बदलना पड़ता है। सबसे बड़ी चुनौती थी कि उम्र भी न झलके और को-एक्ट्रेस के साथ स्क्रीन केमिस्ट्री भी विश्वसनीय लगे। मैं वाकई नर्वस था, लेकिन यही घबराहट मेरे लिए उत्साह का कारण बनी।
Q. लीड कास्ट की उम्र में अंतर पर आपकी राय?
मैंने ऐसे कई सफल रिश्ते अपने परिवार में देखे हैं जहां पति-पत्नी के बीच 15-20 साल का अंतर है। सिनेमा में केमिस्ट्री और ईमानदारी ज्यादा मायने रखती है, न कि उम्र। जब तक ऑन-स्क्रीन बंधन दर्शकों को भरोसेमंद लगता है, तब तक उम्र का फर्क कोई मुद्दा नहीं बनता।
Q. सिनेमा को लेकर आपकी सोच क्या रही है?
मैं कभी सिनेमा का भक्त नहीं रहा। मैंने टीवी पर काम इसलिए शुरू किया क्योंकि मुझे लगा, “दिन के 3000 रुपये मिलेंगे, तो क्यों न कर लिया जाए।” धीरे-धीरे दर्शकों ने मुझे पसंद किया और रास्ता बनता गया। राजकुमार हिरानी जैसे लोग सच्चे फिल्म के पुजारी हैं। मैं तो बस इत्तेफाक से अभिनेता बन गया।
Q. आपने अपने करियर में बहुत सीमित फिल्में कीं, क्यों?
मैंने 30 की उम्र में फिल्मी सफर शुरू किया और 32 में रोमांटिक हीरो बन गया। लगातार एक जैसी फिल्में करने से डर था कि लोग मुझे सिर्फ मनचला लड़का समझने लगेंगे। साथ ही शुरुआती फिल्में बड़े निर्देशकों के साथ होने की वजह से लोगों को लगा कि मैं केवल उन्हीं के साथ काम करता हूं। इस भ्रम के चलते कई स्क्रिप्ट्स मेरे पास आई ही नहीं।
मैंने ब्रेक लिया, खुद से सवाल किए और तब जाकर समझा कि मुझे रियल इंसान बनकर लौटना है, न कि सिर्फ ऑन-स्क्रीन हीरो।
Q. आप अब ज्यादा ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दिखते हैं, इसकी कोई खास वजह?
ओटीटी में कहानी की ताकत ही सबसे बड़ी चीज़ होती है। वहां भव्य सिनेमाई दृश्य नहीं होते, इसलिए स्क्रिप्ट दमदार होनी चाहिए। मेरी फिल्म ‘शैतान’ या ‘केसरी’ थिएटर के लिए बनी थीं, जबकि ‘ब्रीद’ जैसे शो ओटीटी के लिए। हर कहानी का एक उपयुक्त मंच होता है और मैं उसी हिसाब से अपना प्रोजेक्ट चुनता हूं।