अबू धाबी, 16 मई।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दूसरे कार्यकाल की पहली मध्य पूर्व यात्रा ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अब पहले जैसी अलगाववादी नीतियों से हटकर एक नए वैश्विक दृष्टिकोण को अपनाने की ओर अग्रसर हैं। अपने “अमेरिका फर्स्ट” अभियान के विपरीत, अब वह खुद को वैश्विक मंच पर एक निर्णायक और सक्रिय नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
सीएनएन के विश्लेषण के अनुसार, ट्रंप ने इस बार की चार दिवसीय यात्रा में सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात का दौरा कर यह संकेत दिया कि वह पारंपरिक अमेरिकी गठबंधनों को नए सिरे से परिभाषित करने के इच्छुक हैं। उनकी यह यात्रा यह दर्शाती है कि अब वह विश्व संघर्षों में केवल पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि सक्रिय भागीदार बनना चाहते हैं।
ट्रंप का सीरियाई नेता से 25 वर्षों में पहली बार मिलना, और सीरिया पर प्रतिबंधों को हटाने का संकेत देना उनकी बदलती विदेश नीति का प्रमाण है। अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से उनकी गोपनीय मुलाकात को इस दौरे की सबसे महत्वपूर्ण घटना माना जा रहा है।
यात्रा के दौरान उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को कम करने में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की बात की। साथ ही ईरान को चेतावनी दी कि अगर वह वार्ता को गंभीरता से नहीं लेता तो परमाणु समझौते की दिशा हिंसक हो सकती है। रूस को लेकर भी उन्होंने साफ किया कि व्लादिमीर पुतिन तभी वार्ता में भाग लेंगे जब ट्रंप स्वयं हस्तक्षेप करेंगे।
ट्रंप ने अल उदीद एयर बेस पर अमेरिकी सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा:
“मेरी प्राथमिकता संघर्ष समाप्त करना है, न कि उन्हें शुरू करना। पर यदि अमेरिका या उसके सहयोगियों की सुरक्षा खतरे में आई तो मैं ताकत दिखाने से पीछे नहीं हटूंगा।”
साल 2017 में मुस्लिम देशों पर यात्रा प्रतिबंध लगाने वाले ट्रंप ने इस बार अबू धाबी की शेख जायद ग्रैंड मस्जिद का दौरा कर एक बड़ा सांकेतिक बदलाव दिखाया। कतर, जिसे उन्होंने कभी आतंकवाद से जोड़कर आलोचना की थी, इस बार उसके अमीर से गले मिलते नजर आए।
यात्रा के प्रत्येक चरण में ट्रंप ने खुद को एक सौदागर और शांति निर्माता दोनों के रूप में पेश किया। यह यात्रा न केवल उनकी विदेश नीति में बदलाव का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि वह वैश्विक नेतृत्व की नई परिभाषा गढ़ना चाहते हैं।